1920 के दशक
में
कलकत्ता
एवं
शांति
निकेतन
में कला
के
क्षेत्र
में कई
अभिनव
प्रयोग
हुए। इन
गतिविधयों
में
जामिनी रॉय
की
गाथा
उल्लेखनीय
है। वे
बंगाल की
लोक कला
की ओर
आकृष्ट थे।
हालांकि
उन्होंने
कलकत्ता
के
सरकारी
कला
विद्यालय
में
प्रशिक्षण
प्राप्त
किया। रॉय
की
कलात्मक
अभिरुचि
का सही
मायनों
में
विकास
उनके
बाल्यकाल
में ही
बीरभूम
जिले के
बेलियाटोर
गांव में
हुआ जो
उन दिनों
अविभाजित
बंगाल का
एक
हिस्सा
था। रॉय ने
स्वरूपों
के सहजता
को
अपनाया,
सशक्त
एवं सपाट
रंगों
एवं
माध्यमों
को चुना।
स्थानीय
लोक
कलाओं के
विषय-वस्तु
का अपनी
कला में
समावेश
किया।
उन्होंने
कीमती कैनवस
एवं ऑयल
पेंटस को
छोड़कर
सस्ती
सामग्रियों
का
इस्तेमाल
शुरू
किया जो
उन दिनों
लोक कला
के लोग
किया
करते।
रामायण
एवं
कृष्ण
लीला के
दृश्यों
को अपनी
कला में
उतारा।
गांव के
आम
स्त्री-पुरुष
का
चित्रण
किया।
पटुआ के
संग्रह
से
लोकप्रिय
प्रतिबिम्बों
को पुनः
लोगों के
बीच पेश
किया।
जामिनी
राय
सतरंगी
दुनिया
तक सीमित
रहे यानी
भारतीय
लाल,
पीला,
हरा, सिंदूरी,
भूरा,
नीला और
सफेद
रंगों को
कला में
उंडे़ला।
इनमें
अधिकांश
जमीनी या
प्राकृतिक
रंग थे।
लोकोक्तियों
का
विभिन्न
स्वरूपों
में
समुचित
उपयोग
होता है।
एक ऐसा
समय भी
आया जब
उन्होंने
कालीघाट
के पटुओं
के
कैलिग्राफिक
ब्रशलाइन
को
अपनाते
हुए
बारीक
स्वरूपों
की
सर्जना
की।
रेखाओं
की
सुस्पष्ट
बारीकियां
रॉय की
सधी कूची
की कहानी
कहती है।
सुरीली
दिखती ये
रेखाएं
अक्सर
कामुक भी
दिखती
हैं।
सफेद या
पीली-भूरी
पृष्ठभूमि
पर कालिख
से
चित्रकारी
न केवल उनमें
बल्कि
मानव
स्वरूप
में छिपी
लयात्मकता
को भी
प्रस्तुत
करा है।
बाउल एवं
बैठी हुई
महिला इस
शैली के
उत्कृष्ट
उदाहरण
हैं।
राय ने
लोकोक्तियों
के
समुचित
उपयोग
में एक
पूर्व
शिक्षित
कलाकार
की
संवेदना
भर दी।
अपने
चित्रों
में वे
सौम्यता
से विमुख
नहीं
हुए।
इतना ही
नहीं
अपने
चित्र
में जो
भव्यता
वो लाते
हैं उससे
प्राचीन
मूर्तियों
की
गुणवत्ता
बरवस याद
आती है।
जामिनी राय
मां और बच्चा, कैनवास पर ऑयल, 46.5 X116.5 सेमी
जामिनी राय
बंगाली वोमन, कार्ड पर डिस्टेम्पर, 35.5 X73.7 सेमी
जामिनी राय
गोपीनी, कपड़े पर डिस्टेम्पर, 68 X51.2 सेमी
जामिनी राय
संस्थाल गर्ल, कैनवास पर ऑयल, 48.5 X106 सेमी
जामिनी राय
कैट एण्ड लॉब्स्टर, कागज पर डिस्टेम्पर, 39.7 X27.5 सेमी
जामिनी राय
संस्थाल डांस, कागज पर डिस्टेम्पर, 70.5 X36.8 सेमी
|
|