यूँ तो
दक्षिण
भारत में
चित्रकला
की
तंजाउर
एवं
मैसूर
परंपराएं
बेहद
लोकप्रिय
रही हैं
पर उन पर
विद्वानों
का उतना ध्यान
नहीं गया
है जितना
अन्य कई
लोकप्रिय
परंपराओं
को
प्राप्त
है। कला
के
इतिहासकार
बारबरा
रोजी
उन्हें
शास्त्रीय
एवं
लोकप्रिय
परंपराओं
के
मध्यस्थान
देती
हैं।
मैसूर
चित्रकला
में अधिक
बारीकी
होती है।
ये कागज़
पर बनाए
जाते
हैं।
तंजाउर
की
चित्रकारी
लकड़ी पर
फैलाए गए
कपड़े पर
होती है।
अभिव्यक्ति
के तौर
पर दोनों
संपन्न
हैं।
अधिकांशतः
भक्ति
भाव के
उद्देश्य
से पावन
चरित्रों
के चित्र
होते
हैं।
चित्रित
सतह,
स्वतंत्र
रूप से
उन्नत,चूना पत्थर
के निर्माण से
होता है
और उसे
सोने के
पत्तरों
से
संवारा
जाता है।
सोने के
पत्तरों
को उभार
देने के
लिए
रंगीन
कांच या
आभूषण
जड़े
जाते
हैं।
विशिष्ट
चरित्रों
की
चित्रकारी
के
नाटकीय
फ्रेम पर
विशेष
ध्यान
देना
आवश्यक
लगता है।
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